Stories Of Premchand

4: प्रेमचंद की कहानी "कामना तरु" Premchand Story "Kamna Taru"

Informações:

Sinopsis

कुँवर इस समय हवा के घोड़े पर सवार, कल्पना की द्रुतगति से भागा जा रहा था , उस स्थान को, जहाँ उसने सुख-स्वप्न देखा था। किले में चारों ओर तलाश हुई, नायक ने सवार दौड़ाये; पर कहीं पता न चला। पहाड़ी रास्तों का काटना कठिन, उस पर अज्ञातवास की कैद, मृत्यु के दूत पीछे लगे हुए, जिनसे बचना मुश्किल। कुँवर को कामना-तीर्थ में महीनों लग गये। जब यात्रा पूरी हुई, तो कुँवर में एक कामना के सिवा और कुछ शेष न था। दिन भर की कठिन यात्रा के बाद जब वह उस स्थान पर पहुँचे, तो संध्या हो गयी थी। वहाँ बस्ती का नाम भी न था। दो-चार टूटे-फूटे झोपड़े उस बस्ती के चिह्न-स्वरूप शेष रह गये थे। वह झोपड़ा, जिसमें कभी प्रेम का प्रकाश था, जिसके नीचे उन्होंने जीवन के सुखमय दिन काटे थे, जो उनकी कामनाओं का आगार और उपासना का मंदिर था, अब उनकी अभिलाषाओं की भाँति भग्न हो गया था। झोपड़े की भग्नावस्था मूक भाषा में अपनी करुण-कथा सुना रही थी ! कुँवर उसे देखते ही 'चंदा-चंदा !' पुकारते हुए दौड़े, उन्होंने उस रज को माथे पर मला, मानो किसी देवता की विभूति हो, और उसकी टूटी हुई दीवारों से चिमट कर बड़ी देर तक रोते रहे। हाय रे अभिलाषा ! वह रोने ही के लिए इतनी दूर से आये